अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤ž से अनेक लाठव इसके कà¥à¤› पकà¥à¤·à¥‹à¤‚ पर विचार
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Manmohan Kumar AryaDate
24-Feb-2016Language
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UmeshUpload Date
27-Feb-2016Download PDF
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पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° करने का विधान वेदों में है। वेद के इन मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने अपनी पंचमहायजà¥à¤ž विधि में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है। यहीं से यजà¥à¤ž व अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का आरमà¥à¤ हà¥à¤†à¥¤ वेद के मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘ओ३मॠसमिधागà¥à¤¨à¤¿à¤‚ दà¥à¤µà¤¸à¥à¤¯à¤¤ घृतैरà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¯à¤¤à¤¾à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿à¤®à¥à¥¤ आसà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥ हवà¥à¤¯à¤¾ जà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¤¨ सà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾à¥¤à¥¤ इदमगà¥à¤¨à¤¯à¥‡à¥‡-इदनà¥à¤¨ मम।।’ में कहा गया है कि विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ लोगों ! जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° पà¥à¤°à¥‡à¤® और शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से अतिथि की सेवा करते हो, वैसे ही तà¥à¤® समिधाओं तथा घृतादि से वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨à¤¶à¥€à¤² अगà¥à¤¨à¤¿ का सेवन करो और चेताओ। इसमें हवन करने योगà¥à¤¯ अचà¥à¤›à¥‡ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की यथाविधि आहà¥à¤¤à¤¿ दो। à¤à¤• अनà¥à¤¯ मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘सà¥à¤¸à¤®à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¯ शोचिषे घृतं तीवà¥à¤°à¤‚ जà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¤¨à¥¤ अगà¥à¤¨à¤¯à¥‡ जातवेदसे सà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾à¥¤ इदमगà¥à¤¨à¤¯à¥‡ जातवेदसे-इदनà¥à¤¨ मम।।’ में विधान है कि हे यजà¥à¤žà¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ ! अगà¥à¤¨à¤¿ में तपाये हà¥à¤ शà¥à¤¦à¥à¤§ घी की यजà¥à¤ž में आहà¥à¤¤à¤¿ दो, जिससे संसार का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ हो। यह सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° आहà¥à¤¤à¤¿ समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प परमेशà¥à¤µà¤° के लिठहै, मेरे लिठनहीं। अनà¥à¤¯ अनेक मनà¥à¤¤à¥à¤° हैं जो यजà¥à¤ž के पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• व पोषक हैं तथा जिनका यथासà¥à¤¥à¤¾à¤¨ विधान यजà¥à¤ž की विधि में किया गया है। वेद के विधान व शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं का पालन करना मनà¥à¤·à¥à¤¯ का धरà¥à¤® कहलाता है और न करना अधरà¥à¤®à¥¤ धरà¥à¤® सà¥à¤– का कारण होता है व अधरà¥à¤® दà¥à¤ƒà¤– का कारण। यह धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखना चाहिये कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सà¤à¥€ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल साथ साथ नहीं मिलता। कà¥à¤› कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤®à¤¾à¤£ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का मिल जाता है और कà¥à¤› करà¥à¤® करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के संचित खातों में जमा हो जाते हैं जिनका फल कालानà¥à¤¤à¤° व परजनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में मिलता है। ऋषियों ने सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤à¥‚ति के आधार पर घोषित किया है कि यजà¥à¤ž à¤à¤• शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ तम करà¥à¤® है। यजà¥à¤ž करने से अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ सà¥à¤– की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। निषà¥à¤•à¤¾à¤® à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से किठगये यजà¥à¤ž से à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को लाठहोता है। à¤à¤¸à¤¾ साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤§à¤°à¥à¤®à¤¾ ऋषि अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ यजà¥à¤ž से सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का अनà¥à¤à¤µ किये हà¥à¤ ऋषियों का कथन है। ऋषि ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° किये हà¥à¤ वेदों के सतà¥à¤¯ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ व धरà¥à¤® का आचरण करने वाले परोपकारी महातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को कहते हैं। अतः इस पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ के आधार पर संसार के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को यजà¥à¤ž अवशà¥à¤¯ करना चाहिये। इससे होने वाले समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ लाà¤à¥‹à¤‚ का तो पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤° अà¤à¥€ तक नहीं है, परनà¥à¤¤à¥ जितना जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यजà¥à¤ž का परिणाम इस जनà¥à¤® व परजनà¥à¤® में निशà¥à¤šà¤¯ ही कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ व शà¥à¤ होता है।
यजà¥à¤ž करने के अनेक कारण व इससे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाले अनेक लाठहै जो विचार करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होते हैं। पहला कारण तो यह है कि हम जहां रहते हैं वहां हमारे मल मूतà¥à¤°, शà¥à¤µà¤¾à¤¸-पà¥à¤°à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸, à¤à¥‹à¤œà¤¨ निरà¥à¤®à¤¾à¤£, वसà¥à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾à¤²à¤¨ आदि कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से वायà¥, जल व परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ में अनेक विकार व पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है। अतः हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि हम à¤à¤¸à¥‡ उपाय करें कि जिससे हमसे जितनी मातà¥à¤°à¤¾ में पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ हà¥à¤† है, उतना व उससे कà¥à¤› अधिक पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ निवारण का कारà¥à¤¯ हो। इसका समाधान व उपाय यजà¥à¤ž वा अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° करने से होता है। पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ को दूर करने का अनà¥à¤¯ कोई उपाय आज à¤à¥€ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤²à¤ नहीं कराया गया है। यजà¥à¤ž के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त पहला कारà¥à¤¯ तो यह है कि हम अपने निवास को अधिकतम हर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से सà¥à¤µà¤šà¥à¤› रखें। दूसरा यह है कि आमà¥à¤° आदि पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ न करने वा नà¥à¤¯à¥‚नतम कारà¥à¤¬à¤¨-डाइ-आकà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤¡ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने वाली पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ सूखी व छोटे आकार मे कटी हà¥à¤ˆ समिधाओं से यजà¥à¤ž कà¥à¤£à¥à¤¡ में अगà¥à¤¨à¤¿ को पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ªà¥à¤¤ कर उस अगà¥à¤¨à¤¿ के तीवà¥à¤° व पà¥à¤°à¤šà¤£à¥à¤¡ होने पर उसमें शà¥à¤¦à¥à¤§ गो घृत सहित वायà¥, जल, परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ व सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की पोषक व उसके अनà¥à¤•à¥‚ल सामगà¥à¤°à¥€ व पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की आहà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दी जायें। इसके लिठचार पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सामगà¥à¤°à¥€ का विधान किया गया है जिसमें मà¥à¤–à¥à¤¯ गोघृत है। अनà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में मिषà¥à¤Ÿ पदारà¥à¤¥ जिसमें शकà¥à¤•à¤° आदि समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं। तीसरे वरà¥à¤— में सà¥à¤—नà¥à¤§à¤¿à¤¤ पदारà¥à¤¥ आते हैं जिसके अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त केसर, कसà¥à¤¤à¥‚री आदि पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है। चतà¥à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पदारà¥à¤¥ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¿à¤• ओषधियों सोमलता व गिलोय आदि सहित बादाम, काजू, नारीयल, छà¥à¤†à¤°à¥‡, किशमिस आदि पोषक पदारà¥à¤¥ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं। इनका यजà¥à¤ž में आहà¥à¤¤à¤¿ हेतॠविधान किया गया है। इन पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की अगà¥à¤¨à¤¿ में आहà¥à¤¤à¤¿ देने से यह पदारà¥à¤¥ अतिसूकà¥à¤·à¥à¤® होकर वायà¥à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² में फैल जाते हैं जिनसे वायà¥à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ सहित वायà¥à¤¸à¥à¤¥ वाषà¥à¤ªà¥€à¤¯ जल की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है जो बाद में वरà¥à¤·à¤¾ के होने पर खेत खलिहानों के अनà¥à¤¨ को शà¥à¤¦à¥à¤§ व पवितà¥à¤° बनाते हैं। यजà¥à¤ž करते समय यजà¥à¤žà¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ में धरà¥à¤®à¤à¤¾à¤µ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सà¥à¤µà¤¹à¤¿à¤¤-परहित दोनों व अहित किसी का नहीं, का à¤à¤¾à¤µ होता है। इससे ईशà¥à¤µà¤° यजà¥à¤žà¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ के इस शà¥à¤ व पà¥à¤£à¥à¤¯ कारà¥à¤¯ के लिठउसे सà¥à¤– व आननà¥à¤¦ की अनà¥à¤à¥‚ति कराने सहित अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को उपलबà¥à¤§ कराता है। आरोगà¥à¤¯ व सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ लाठतो यजà¥à¤ž का à¤à¤• मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤£ है। गोघृत के गà¥à¤£ तो सà¤à¥€ को जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हैं। गोघृत का सेवन करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ निरोग रहने के साथ बलिषà¥à¤ होता है। ईशà¥à¤µà¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ से पूरà¥à¤µ यह सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ व बल ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ के लिठअà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ होता है जिसकी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ गोघृत आदि के सेवन करने से होती है। यजà¥à¤ž में इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने से इसका सूकà¥à¤·à¥à¤® रूप वायà¥à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ रहता है जो न केवल यजà¥à¤žà¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ अपितॠयजà¥à¤ž सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के चारों दिशाओं में दूर दूर तक लोगों व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ करता है। यजà¥à¤ž में दी गई घृत व सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की आहà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सूरà¥à¤¯ की किरणों के साथ हलà¥à¤•à¥€ होने के कारण आकाश में काफी ऊंचाई तक जाती है जिससे वायॠमें जो सूकà¥à¤·à¥à¤® जीव, बैकà¥à¤Ÿà¥€à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ आदि होते हैं उनसे होने वाले दà¥à¤·à¥à¤ªà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ बचा रहता है।
यजà¥à¤ž में हमारे ऋषियों ने वेद मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤° का विधान à¤à¥€ किया है। वेद मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ होने से ईशà¥à¤µà¤° से समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• जà¥à¤¡à¤¼à¤¤à¤¾ है व उससे मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने के साथ वेद मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के कणà¥à¤ =सà¥à¤®à¤°à¤£ होने से उनकी रकà¥à¤·à¤¾ होती है और साथ हि मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में निरà¥à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ लाà¤à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ होता है। इन मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— व उनके अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को पढ़ने से यजà¥à¤žà¤•à¤¤à¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ शà¥à¤¦à¥à¤§ हिनà¥à¤¦à¥€ बोल पाते हैं। इससे अनेक वैदिक शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨, उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¥‡à¤® व उनके पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ को बल à¤à¥€ मिलता है। हम अपने अनà¥à¤à¤µ से यह समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करना मनà¥à¤·à¥à¤¯ के परमारà¥à¤¥ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से à¤à¥€ अधिक लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ है। अनà¥à¤¯ मानà¥à¤· पदà¥à¤¯ व गदà¥à¤¯ वाकà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— व उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ इतना लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ नहीं है जितना वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अरà¥à¤¥ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित उनका उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ होता है। यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤®à¥à¤– मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करने से ईशà¥à¤µà¤° की कृपा व सहायता पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है और जीवन हर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से उनà¥à¤¨à¤¤ व सà¥à¤–ी होता है। इससे हमारा वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और परजनà¥à¤® दोनो बनता है जबकि इससे इतर कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से परजनà¥à¤® की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ में अधिक लाठनहीं होता। घरों में यजà¥à¤ž करने से à¤à¤• लाठयह होता है कि यजà¥à¤ž करने से गृह वा निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की दूषित वायॠयजà¥à¤žà¤¾à¤—à¥à¤¨à¤¿ के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में गरà¥à¤® होकर हलà¥à¤•à¥€ हो जाती है और वह दरवाजों, खिड़कियों व रोशनदानों से बाहर चली जाती है। हलà¥à¤•à¥€ होकर दूषित वायॠके बाहर जाने से जो अवकाश बनता है उसमें बाहर की किंचित शà¥à¤¦à¥à¤§ वायॠसà¥à¤µà¤¤à¤ƒ निवास के à¤à¥€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हो जाती है जो सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के लिठहितकर व सà¥à¤–दायक होती है। अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° में यजà¥à¤žà¥€à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की आहà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से वह जलकर सूकà¥à¤·à¥à¤® हो जाते हैं और वायॠसे मिलकर वायॠके दà¥à¤°à¥à¤—नà¥à¤§à¤¾à¤¦à¤¿ अनेक दोषों को दूर करते हैं जिनमें हानिकारक बैकà¥à¤Ÿà¤¿à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ व सूकà¥à¤·à¥à¤®à¤œà¥€à¤µ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होकर उनका अनिषà¥à¤Ÿà¤•à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ यजà¥à¤žà¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ व उसके परिवार के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर नहीं होता। गोघृत विषनाशक à¤à¥€ होता है। विषैले सांप के काटे हà¥à¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को गोघृत पिलाने से शरीर पर विष का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ समापà¥à¤¤ होता है। गोघृत के इसी गà¥à¤£ के कारण वायॠमें उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सूकà¥à¤·à¥à¤® कीट व बैकà¥à¤Ÿà¤¿à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ नषà¥à¤Ÿ होते हैं। आरà¥à¤¯à¤œà¤—त के à¤à¤• यजà¥à¤žà¤ªà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ वीरसेन वेदशà¥à¤°à¤®à¥€ जी, इनà¥à¤¦à¥Œà¤° ने अनेक छोटे-बड़े यजà¥à¤ž कराये और परिकà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पाया कि हृदय रोगियों, जनà¥à¤® के बहिर व मूक वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ तक को यजà¥à¤ž से पूरà¥à¤£ लाठहà¥à¤†à¥¤ दैनिक यजà¥à¤ž करने वाले लोग यजà¥à¤ž न करने वाले परिवारों से अधिक सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥, निरोगी व दीघारà¥à¤¯à¥ होते हैं à¤à¤¸à¤¾ अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने पर पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। हमारा यह à¤à¥€ अनà¥à¤à¤µ है कि यजà¥à¤ž करने वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जीवन में अनेक छोटी-बड़ी दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾à¤“ं के होने पर à¤à¥€ अनेक बार उसमें पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रहता है। यह वैदिक जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करने सहित यजà¥à¤ž करने का लाठही जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है। यह à¤à¥€ हमारा अनà¥à¤à¤µ है कि यजà¥à¤ž करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विषयों को गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने में तीवà¥à¤°à¤¤à¤® व महतॠकà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ वाली होती है तथा वह अपने जीवन का कोई à¤à¥€ लकà¥à¤·à¥à¤¯ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ कर उसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है।
यजà¥à¤ž के लाठका à¤à¤• उदाहरण पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर इस लेख को विराम देंगे। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ में पà¥à¤°à¤à¥ आशà¥à¤°à¤¿à¤¤ जी का यश व कीरà¥à¤¤à¤¿ यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤• के रूप में आज à¤à¥€ सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। उनके à¤à¤• अनà¥à¤—ामी दमà¥à¤ªà¤¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ थे जो उनके सतà¥à¤¸à¤‚ग में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ होते थे परनà¥à¤¤à¥ उनके पास धन का नितानà¥à¤¤ अà¤à¤¾à¤µ था। वह उन दिनों यजà¥à¤ž करने के लिठघृत व सामगà¥à¤°à¥€ तक का वà¥à¤¯à¤¯ करने में समरà¥à¤¥ नहीं थे। महातà¥à¤®à¤¾ जी के सामने उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यजà¥à¤ž करने की अपनी इचà¥à¤›à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ की और धनाà¤à¤¾à¤µ की यथारà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बताई। महातà¥à¤®à¤¾ जी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ संकलà¥à¤ª लेकर यजà¥à¤ž करने का परामरà¥à¤¶ दिया और कहा कि ईशà¥à¤µà¤° की कृपा से धीरे-धीरे सà¤à¥€ साधन पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जायेंगे। इस परिवार ने दैनिक यजà¥à¤ž आरमà¥à¤ कर दिया। शनैः शनैः इनकी आरà¥à¤¥à¤¿à¤•, शारीरिक व सामाजिक उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ होती गई। आरà¥à¤¥à¤¿à¤• उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ इतनी हà¥à¤ˆ कि इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जीवन में लाखों वा करोड़ों रूपये शà¥à¤ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठदान दिये। आज à¤à¥€ इनके पà¥à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं यजà¥à¤ž करते हैं। अनेक संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं के अधिकारी हैं। उनका यश सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है तथा वह सà¥à¤–ी व समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हैं। हमारी यदा-कदा उनसे à¤à¥‡à¤‚ट होती रहती है। आपने पिछली à¤à¤• à¤à¥‡à¤‚ट में बताया कि जब 1947 में वैदिक राषà¥à¤Ÿà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ का विà¤à¤¾à¤œà¤¨ हà¥à¤† तो लोग अपनी धन-समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ लेकर पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ से à¤à¤¾à¤°à¤¤ आये थे परनà¥à¤¤à¥ यह परिवार अपनी सारी समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ वहीं छोड़कर केवल यजà¥à¤ž कà¥à¤£à¥à¤¡ अपने गले में टांग कर व उसमें विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ अगà¥à¤¨à¤¿ को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखते हà¥à¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤ पहà¥à¤‚चा था। इस परिवार ने उस अगà¥à¤¨à¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ करते हà¥à¤ उसे बà¥à¤à¤¨à¥‡ नहीं दिया। विगत लगà¤à¤— 75 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से यह यजà¥à¤žà¤¾à¤—à¥à¤¨à¤¿ निरनà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤œà¥à¤œà¤µà¤²à¤¿à¤¤ है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में शà¥à¤°à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¥€ जी सपतà¥à¤¨à¤ªà¥€à¤• व परिवार सहित इस अगà¥à¤¨à¤¿ में ही पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं यजà¥à¤ž करते हैं। à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, परिवार व उनसे जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ लोग धनà¥à¤¯ हैं। हम तो इनके दरà¥à¤¶à¤¨ कर ही सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को कृतकृतà¥à¤¯ मानते हैं। हमने अपने जीवन में à¤à¥€ यजà¥à¤ž के अनेक चमतà¥à¤•à¤¾à¤° अनà¥à¤à¤µ किये हैं। यह सब ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¥‡ विचारों वाले अपने अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को उनकी पातà¥à¤°à¤¤à¤¾ व योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने पंचमहायजà¥à¤ž विधि और संसà¥à¤•à¤¾à¤° विधि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में पंच महायजà¥à¤žà¥‹à¤‚ का विधान किया है। इसे जान व समà¤à¤•à¤° सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को इसका सेवन कर लाठउठाना चाहिये। इसको करने से यजà¥à¤žà¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ को अवशà¥à¤¯ लाठमिलेगा, à¤à¤¸à¤¾ हमें पूरà¥à¤£ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है जिसका आधार हमारा अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤à¤µ है। हमने यजà¥à¤ž का à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• व वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है। इस विषय में और बहà¥à¤¤ कà¥à¤› कहा जा सकता है। और अधिक विसà¥à¤¤à¤¾à¤° न कर लेख को यहीं विराम देते हैं।
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